ट्रेजडी किंग कहलाने वाले दिलीप कुमार दुनिया को अलविदा कह गए. उनके जीवन में ऐसा भी दिन आया था जब उन्हें जेल जाना पड़ा।
वाकया कुछ यूं था कि अपनी जवानी के दिनों में एक क्लब में भाषण देते हुए दिलीप कुमार ने कहा कि आज़ादी की लड़ाई जायज़ है और ब्रिटिशों की वजह से ही हिन्दुस्तान में सारी मुसीबतें पैदा हो रही हैं। इस क्रान्तिकारी भाषण पर तालियां तो ख़ूब बजीं लेकिन जल्द ही वहां पुलिस आ गयी और अंग्रेज़ी हुकूमत के ख़िलाफ़ भाषण देने के कारण उन्हें गिरफ़्तार कर लिया गया।
दिलीप कुमार को यरवदा जेल भेज दिया गया और कुछ कैदियों के साथ बंद कर दिया गया। वह सभी कैदी सत्याग्रही थे और उनसे दिलीप कुमार को पता चला कि सरदार बल्लभभाई पटेल भी उसी जेल की किसी कोठरी में कैद हैं। चूंकि सभी कैदी उनके साथ भूख हड़ताल पर थे तो दिलीप साहब ने भी उनका साथ देने की ठानी और भूख हड़ताल पर बैठ गए।
दिलीप कुमार एक बेहतरीन क्रिकेटर बनना चाहते थे, वह अपने परिवार के साथ कारोबार के सिलसिले में मुंबई रहने लगे। उस दौरान क्रिकेट उनका जुनून बन गया था। वह दिन रात क्रिकेट का ख्वाब देखते थे। यहां तक की एक बार उनके दोस्तों ने उन्हें कॉलेज के नाटक में हिस्सा लेने के लिए कहा, तो दिलीप कुमार ने इंकार कर दिया। दिलीप कुमार बेहद ही शर्मीले हुआ करते थे।
बता दें साल 1943 में दिलीप कुमार ने अपने फिल्मी करियर की शुरुआत की थी। वह एक इंटर्व्यू के लिए मुंबई के सबसे बड़े स्टूडियों बॉम्बे टॉकीज में पहुंचे थे। बॉम्बे टॉकीज की मालकिन देविका रानी की नजर उन पर पड़ी। देविका ने उन्हें गौर से देखा और पूछा कि एक्टिंग करोगे-जिसके जवाब में दिलीप कुमार बोले कि मुझे नहीं आती, देविका ने उन्हें कहा सीख जाओगे।
इस दौरान दिलीप कुमार के पिता का बिजनेस अचानक डूब गया था। परिवार की सभी जिम्मेदारियां उनके उपर आ गई थी। दिलीप कुमार बॉम्बे टॉकीज में 1250 रुपये महीने के की सैलरी पर काम करने लगे, लेकिन उन दौरान एक्टिंग का पेशा काफी बदनाम था। लिहाजा दिलीप कुमार पर्दे के पीछे काम करने लगे। साल 1944 में वह रुपहले पर्दे पर ज्वार भाटा बनकर उभरे।